प्रो. वीरेन्द्र कुमार अलंकारः, संस्कृत विभाग, पंजाब विश्वविद्यालय, चण्डीगढ
नाट्यकृद् भक्तिविल्लोकसंस्कारकृत्
गीतसंगीतकाव्येष्वधीती सुधीः।
धर्मविद् भेदभिन्नृत्यकृद् गायकः
देवदेवो हृदा स्तूयते शङ्करः।।१।।
लेभे यो वै जनुः श्रीप्रसिद्धेऽसमे
घोरकालेऽपि यो भास्वरो भायुतः।
मेने ह्येकं हि धर्मं सदा जीवने
देवदेवः स वै स्तूयते शङ्करः।।२।।
वर्गविद्वेषहीनं समाजं भुवि
कर्तुमाचारयुक्तं प्रयेते सदा।
कर्मणा सन्महान् कर्मणैव खलः
देवदेवो हृदा स्तूयते शङ्करः।।३।।
शाश्वतं वैष्णवं धर्ममाह मुनिः
बाल्यकालादयं सन्तधीः शान्तधीः।
क्रान्तदर्शी कविर्वेदविद्यामतिः
देवदेवो हृदा स्तूयते शङ्करः।।४।।
एकतायां बलं ह्येकतायां धनम्
एकतायां सुखं चैकताने सधिम्।
एकतामीश्वरं प्राह यः क्रान्तिकृद्
देवदेवः स वै स्तूयते शङ्करः।।५।।
नाट्यकृद् भक्तिविल्लोकसंस्कारकृत्
गीतसंगीतकाव्येष्वधीती सुधीः।
धर्मविद् भेदभिन्नृत्यकृद् गायकः
देवदेवो हृदा स्तूयते शङ्करः।।१।।
अर्थ- जो स्वयं एक बड़े नाट्यविधा के विद्वान् या नाट्य रचनाकार हैं, भक्ति के विद्वान् हैं, सारे लोक का परिष्कार करने वाले हैं, गीत, संगीत और काव्य के कुशल अध्येता हैं, पवित्र बुद्धि वाले हैं, धर्म के यथार्थ स्वरूप के वेत्ता हैं, आपसी भेदभाव को दूर करते हैं, नृत्यकार और गायक हैं, ऐसे महान् देव श्रीमंत शंकर देव की ह्रदय से स्तुति की जाती है।।१।।
लेभे यो वै जनुः श्रीप्रसिद्धेऽसमे
घोरकालेऽपि यो भास्वरो भायुतः।
मेने ह्येकं हि धर्मं सदा जीवने
देवदेवः स वै स्तूयते शङ्करः।।२।।
अर्थ- जिन्होंने श्री सम्पदा से सम्पन्न असम की भूमि में जन्म लिया और जो घने अन्धकार में प्रचण्ड दीप्ति या तेज से युक्त सूर्य के समान हैं। जिन्होंने अपने जीवन में सदा एक ही धर्म अर्थात् मानवता के धर्म को स्वीकार किया है, ऐसे महान् देव श्रीमंत शंकर देव की हृदय से स्तुति की जाती है।।२।।
वर्गविद्वेषहीनं समाजं भुवि
कर्तुमाचारयुक्तं प्रयेते सदा।
कर्मणा सन्महान् कर्मणैव खलः
देवदेवो हृदा स्तूयते शङ्करः।।३।।
अर्थ- जिस महान् आत्मा ने इस भारत की भूमि पर समस्त समाज को वर्ग या जाति के आपसी द्वेष से रहित करने के लिए और सभ्य समाज की संरचना के लिए निरन्तर प्रयास किया, जो यह मानते थे कि कर्म से ही मनुष्य अच्छा और महान् होता है तथा कर्म के कारण ही दुष्ट या पापी होता है अर्थात् किसी कुल में जन्म लेने मात्र से कोई छोटा या बड़ा नहीं हो जाता, ऐसे महान् देवतास्वरूप श्रीमंत शंकरदेव की हृदय से स्तुति की जाती है।।३।।
शाश्वतं वैष्णवं धर्ममाह मुनिः
बाल्यकालादयं सन्तधीः शान्तधीः।
क्रान्तदर्शी कविर्वेदविद्यामतिः
देवदेवो हृदा स्तूयते शङ्करः।।४।।
अर्थ- जो वैष्णव धर्म को ही शाश्वत धर्म मानते थे, ये बाल्यकाल से ही सन्त प्रवृत्ति तथा शान्त बुद्धि के व्यक्ति थे। ये क्रान्तदर्शी कवि तथा वैदिक विद्या के लिए विशेष आस्था रखते थे, ऐसे महान् देवतास्वरूप श्रीमंत शंकरदेव की हृदय से स्तुति की जाती है।।४।।
एकतायां बलं ह्येकतायां धनम्
एकतायां सुखं चैकताने सधिम्।
एकतामीश्वरं प्राह यः क्रान्तिकृद्
देवदेवः स वै स्तूयते शङ्करः।।५।।
अर्थ- जिन्होंने मानवीय एकता को ही सबसे बड़ा बल, एकता को ही सबसे बड़ा धन, एकता को ही सबसे बड़ा सुख और एकरसता में ही ज्ञान की अग्नि को प्रदीप्त माना है तथा एकता को ही ईश्वर माना है, ऐसे उस महान् देवतास्वरूप श्रीमंत शंकरदेव की पुनः पुनःस्तुति की जाती है।।५।।
सधि-अग्नि
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